Tuesday 23 August 2011

देश प्रजा तंत्र मंत्र



Hamara Bharat
भारत हमारा देश है..सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा... हम भारतीय है... हमारा भारत सोने की चिड़िया........ हमारा भारत पूरे विश्व का गुरू............ विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में अब तक जीवन्त धर्म का देश भारत...

पहिले पहल यदि कुछ देखने की याद है तो दुनियां कुछ इसी तरह दिखी...
सुबह की दूर से ठन्डी होती आयीं हवायें, आपस में बतियाते पंक्षी, सूरज के उगने की दिशा से आते हुए प्रकाश फैलने की दिशा में जाते दीखते...दूर अलग दिशाओं से आते मंदिरों के घन्टों और अजान के स्वर की गूंज में औंकार के गुन्नाते-झन्नाते स्वर, पास आती खटपटाती गायों-भैसों के मिले-जुले जत्थे और उन्हें हांकता बरेदी रोज ही कृष्ण की याद दिला जाता...
पहिली कक्षा के प्रवेश के लिए पिता के साथ गये तो सीने में गर्मी और कपकपी होने लगी, हेडमास्टर ने पीठ पर होले से थपकी दी कहा ‘लड़का अच्छा है।‘ पूछने लगे बड़े होकर क्या बनोगे ? मैं समझ नहीं सका कि बड़ा होकर क्या बना जाता है। वे ही बोलने लगे ‘ मास्टर का लड़का है बड़ा होकर मास्टर नहीं बनेगा तो क्या बनेगा ? तभी मेरे हृदय में एक बात तौ पैठ गई कि ‘मैं कभी मास्टर तो नहीं बनूंगा’। यह मेरी चेतना का पहला इन्कार था।

घर में किताबों का अंबार, किताबें इतनी कि घर वाचनालय में तब्दील था। घर के हर कोने पर साहित्य संस्कृति की किताबें अपना अधिकार जमा बैठी थी। बीते पांच साल हुए भारत पाकिस्तान युद्ध की खबरें हिन्दोस्तान में छपती थी वे बड़ी-बड़ी तोपें, फाईटर प्लेन, सेना, जोश, हिम्मत दीखती तो बाल मन सोचता बड़े होकर फाईटर पायलट बनूंगा।
  
सुबह के सात बजे गोबर से छितरायी कुलिया से उछल-उछल कर, अपनी चप्पल को बचाते अपनी प्रायमरी पाठशाला के प्रांगण में अपनी-अपनी कक्षाओं की लाइन में सबसे पीछे सावधान, विश्राम, सावधान के बाद तीन लड़कों के गाये राष्टगान अनुशासन का कौतुहल जगाता। गोबर से लिपी-पुते कमरे में जूट की फटी-पुरानी टाट फट्टी पर बैठ पहला जनगणमन...सीखा,


जनगणमन अधिनायक जय हो, भारत भाग्य विधाता।
पंजाब सिंध गुजरात मराठा, द्राविण उत्कल बंगा।
विन्य हिमाचल यमुना गंगा, उच्छल जलध तरंग।
तब शुभना में जागे, तब फिर आशिश मांगे।
गाहे तब जय गाथा।
जन गण मंगल दायक जय हे, भारत भाग्य विधाता ।
जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे .....

दीवार पर टंगा भारत का नक्शा, मास्टर जी बताने लगे कि यहां देखो.. हम देश में इस हिस्से में रहते हैं और यह गीत जो तुम्हें सिखाया वह हमारा राष्टगान  है...बताते उनके चेहरे पर गर्व का भाव और हमारे मन में रोमांच के भाव भर गये। दबी जबान से वे बताते कि उन्होंने भी स्वतंत्रता के आन्दोलन में भाग लिया था। दूसरे दिन वे और भी नक्शे लेकर आये भारत के  भूगोल, राजनैतिक, खनिज, जल, वन के नक्शे...वे बताते गये, हमारा भारत सोने की चिड़िया था.. भारत में अनेक धमों के लोग रहते हैं... उत्तर की ओर से हिमालय... पूर्व की ओर से गहन वन, पश्चिम की ओर से रेगिस्तान और दक्षिण की ओर से समुद्र भारत की रक्षा करता है। वे भारत के बारे में बताते गये और हमारे हृदय में भारत धड़कने लगा, वे कहते कि भारत बुद्ध, महावीर, कृष्ण, राम, का है, ईश्वर और अल्लाह का है, वे कहते कि यह शून्य और सत्य की जमीन है, प्रेम और ईश्वर की जमीन है, रामायण और महाभारत की जमीन है, ऐश्वर्य और वैराग्य की जमीन है, आदि से अन्त की जमीन है। वे यह भी कहते कि पूर्व जन्मों के अच्छे कर्मों के फल से इस जमीन पर पैदा होने का मौका मिलता है। भगवान भी इस भारत भूमि पर जन्म लेने को तरसते हैं। इसी जमीन से जड़ से चेतन की यात्रा का बीज मिलता है। इसी जमीन से जीवन के मर्म का सत्व मिलता है।

हम कक्षाओं आगे बढ़ते गये, पढ़ते गये और हमें रटाया जाता, पढ़ते नहीं तो पीटा जाता, और यदि लिखते नहीं तो अगली कक्षा में जाने लायक नहीं समझा जाता, हां चूंकि मेरे पिता भी मास्टर थे सो इस नाते उत्तीर्ण कर दिया जाता।

हमें सच्चाई, देश-भक्ति, दया-धर्म, की कहानियां पढ़ाई जाती...झूठ, लालच, स्वार्थ, अहंकार, अज्ञान, दुष्टता, बुराई से दूर रहने को कहा जाता, बुराई से पाया धन, दूसरे का धन, झूठा मान-सम्मान से परे रहने की समझाईश दी जाती, अपनी कक्षाओं में चारों तरफ लगी उपदेशों की पट्टियां अपने जीवन में उतारने की हिदायत दी जाती।


हम गुलाम थे और हम आजाद हुए, गुलामी में हमारा देश कैसा था और अंग्रेजों के अत्याचार, देश के लोगों की मजबूरियां, जलियावाला बाग, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बाल गंगाधर तिलक, शास्त्री जी, नेहरू जी और भारत को गांधी ने आजाद कराया, भारत का बंटवारा, भाखड़ा नंगल बांध और विकास के इतने सारे इंतजाम..

हम अपनी दुनिया में खेलते-कूदते रोज रात आने वाली सुबह के इतजार में सो जाते और फिर तोतों की टें-टें, कौओं की कांव-कांव, और बरेदी की आवाज आने तक तो जाग ही जाते, स्कूल में शाम होने का इंतजार करते खेलने के लिए...

हम बच्चों से विदृयाथी बने, छात्र बने, स्टुडेन्ट बने, स्नातक बने, स्नातकोत्तर बने, फिर काम की तलाश में बेरोजगार बने, जुगाड़ करके पिछले दरवाजे से नौकरी पाई तो वह भी संविदा, जो केवल छोड़ने के लिए ली थी। सो छूट गई...

इतना होने पर भी मन पुरानी यादों में ही लिपटा रहा, मन में बने बुद्ध का आत्म ज्ञान, महावीर का तप, आदि शंकराचार्य का धर्मज्ञानबोध, राम की मर्यादा, कृष्ण का कर्म, कबीर का वैराग्य, मीरा का प्रेम, गांधी की सार्थकता, सरदार पटेल और तिलक का देशप्रेम बोस का बलिदान, नेहरू की भारत की खोज, प्रेमचंद का आम आदमी, अज्ञेय, निराला, पन्त, विनोबा, मदर टेरिसा ऐसे ही अनेक लोगों के काम को मन, मन ही मन गुनता रहा। इनमें से अपने को खोजता जाने क्या क्या सोचता रहा।
एक ऋषि का कथन बरबस याद आता है।
संसार एक जंगल है, इसमें हिरण घास खाता है। हिरण को शेर खा जाता है और शेर को आदमी मार डालता है।
संसार एक समुद्र है। इसमें बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है।


बड़े तूफानों से छोटी घांस तो बच जाती है लेकिन बड़े वृक्ष गिर जाते हैं....
Desh ka Sacca Beta

2 comments:

  1. भाई इसे पढ़ते हुए हमें भी अपने बचपन के दिन याद आ गए. वो भी क्‍या दिन थे ....
    ऋषि का कथन ही यथार्थ का धरातल है भाई, जिन्‍दगी का सफर कहें या सफर को जिन्‍दगी.

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  2. अपनापा महसूस हुआ, जैसे खुद का बचपन. उल्‍लेखनीय पहला इनकार. (पेज का डिजाइन ठीक करें, रंग के कारण पढ़ने में अड़चन हो रही है.

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