Thursday, 14 July 2011

कविसंध्या

अच्छा-अच्छा मैंने उनको पढ़ा है। नेहरू के आव्हान पर घर छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूदे, फिर शिक्षा की अलख जगाने ग्राम जीवन अपनाया, ग्राम जीवन की जो तस्वीर उन्होंने अपनी कविताओं में उतारी है। उसकी समीक्षा लिखना चाहता था। अच्छा...वे जब युवा थे तो कविता पढ़ते उनका गर्वीला स्वर और दमकता चेहरा अब भी याद हैं। अच्छा .. वे ख्यालीराम और ईसुरी की प्रतिभा के समान्तर हैं। अच्छा..अशोक जी उनके विन्यास में छपने के लिए कवितायें भेजते थे अच्छा.. वे बच्चन जी के प्रिय कवि हैं...अच्छा.. भवानी दा के साथ कवि सम्मेलनों में दीखते थे। अच्छा... त्रिलोचन, मलय, नार्गाजुन जैसे कवि की उंचाई के कवि हैं अच्छा उनसे अच्छा आदमी जो कवि भी हो हमने नहीं देखा, अच्छा वे इतने बड़े साहित्यकार के पिता भी हैं। अच्छा... वे साहित्य के इतने बड़े स्तंभ हैं.. अच्छा...उनके गीतों में बुन्देली माटी की महक है अच्छा.. राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है वे एक साहित्य के युग हैं..वे इस सदी के वरिष्ठ और शीर्षतम कवि साहित्यकार हैं।

अच्छा ..60 के हो गये..वाह भई ...70 वां जन्मदिवस पर कविता संघ्या मनाई है...अरे राम... 80 के होने पर भी लिखते पढ़ते हैं, अरे हम तो इस उम्र तक आने की सोच ही नहीं सकते, आप कहां असली घी वाले और हम कहां मिलावटी तेल वाले...उन्होंने साहित्य तो खूब लिखा है पर छप नहीं पाया.. । क्या... तीन बेटियों की शादी करते पैसा खत्म हुआ और सबसे छोटे लड़के के पास रहते हैं शान से...  । बुहुत दिनों से, उनके बारे में.. कुछ पता नहीं चला...हां बेटा, दूसरे राज्य में जाकर बस गया सो बेचारे करते भी तो क्या... जाना ही पड़ा, ..अरे भाई जीवन भर जिस माटी के बारे में लिखा,  जहां सब कुछ किया,   जीवन की संध्या में वहां जाकर क्या मजा कर रहे हैं।...उनकी तो सम्मान पाने की उम्र है...बहुत दिनों से उनके बारे में पता ही नहीं लगा.. पता नहीं, हैं भी, कि नहीं,.. देखो कोई फोन नम्बर हो तो बात करेंगे...उनका लिखा साहित्य तो बहुत था लेकिन कोई ध्यान नहीं दे पाया अब तो वे उसे सम्हाल कर रख भी नहीं पाते होंगे

क्या बहुत बूढ़े हो गये हैं। चल नहीं पाते..हम साहित्यकार भी क्या करें, काम-धाम से फुरसत ही नहीं मिलती,  हमारे शहर में इतना बड़ा साहित्यकार रहता है। जो पूरे देश में वरिष्ठ भी है लेकिन क्या करें पत्रिका के काम से तो फुरसत मिलती नहीं। उनके घर के पास ही विज्ञापन लेने रोज ही जाता हूं। पर सोचता हूं साहित्य की बात शुरू हुई तो बस दिन गया काम से। देखते हैं... उनके जन्मदिन पर कुछ करने की सोचते हैं

यार हम और हमारा साथी भाई एक बार ढूंढते ढूढ़ते उनके घर पर गये थे। जाते ही हमने देखा कि वे तो पूरे प्रेस हैं। लिखे-जा रहे... लिखे जा रहे........... भाई, मेरे पास किसी का साहित्य पढ़ने की फुरसत कहां हैं, हां.. मैंने दो-तीन प्रकाशकों के नाम-पते बता दिये है। और बताया है कि कागज का खर्चा की व्यवस्था कर दें और सी.डी. पर पूरा मिल जाये तो प्रकाशक तैयार हो जाते हैं। 10 कापी आपको दे देंगे। बाकी वो छापता रहेगा, चाहे कितनी भी प्रतियां आपका तो नाम ही होगा

वे कह रहे थे कि थोड़ा सा पैसा बचा है सोचा था बीमारी में काम आयेगा और बाकी मेरी अंतिम यात्रा के लिए रखा है। सोचता हूं कि छपाई में खर्च करूंगा तो क्या बच्चों पर बोझ बनूगा। अब सोचता हूं कि साहित्य कहीं दान कर दूं,  कम से कम किसी के देखने के तो काम आयेगा और जब कोई मेरे साहित्य पर लिखना चाहेगा तो ढूंढ ही लेगा।

पीठ में दर्द से चल नहीं पाता, हृदय में भी कफ बनता है। अब लिखना तो बन्द हो गया है... पूरी शाम टी.वी. देखते रात हो जाती है। सब कहते हैं बात अधिक न करो दर्द बढ़ जायेगा।

घर में इतना साहित्य रखने की जगह नहीं है, दीमक का खतरा तो है ही, और कहीं घर के लोगों ने इसे रद्दी में फेक दिया तो मेरी आत्मा भटकेगी। मैं मोक्ष नहीं चाहता, मरने के बाद में इन्हीं किताबों में समा जाउंगा..

4 comments:

  1. कवि के वय की संध्‍या, उसके काव्‍य और रचनाधर्मिता पर लागू नहीं हो सकती.

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  2. @कहीं घर के लोगों ने इसे रद्दी में फेक दिया तो मेरी आत्मा भटकेगी। मैं मोक्ष नहीं चाहता, मरने के बाद में इन्हीं किताबों में समा जाउंगा..

    कवि हृदयेक्षा का वर्णन अच्छा लगा।
    आगत का स्वागत है।

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  3. हृदयेक्षा को हृदयेच्छा पढा जावे।

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  4. Uncleji [Aadarniy Manoj ji] ke baare me bahut achchha likha hai. Naam nahi diya to kya hua sab kuchh itna saaf hai ki padh kar fauran pata chal jata hai ki kiske baare me hai.Aaj ke samay me sahitya lekhan ek bada duruh kaary ho gaya hai.Vyvsaayikta ke aage saahitiykta dab gayi hai.

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