Sunday, 10 July 2011

भंगाराम-देवताओं का न्यायालय



भंगाराम-देवताओं का न्यायालय

बस्तर के सभी देवताओं की उपस्थिति
जनजातीय पुजारी का महत्वपूर्ण स्थल
शक्तिपात से कापते सिरहा,

नागवंशीय परम्परा के उत्स का समग्र दर्शन
भंगाराम
आंगादेव और देवताओं की यात्रा का जलूस का विचित्र आयोजन
9 परगान के 500 माझी क्षेत्रों के ग्रामों के देवताओं का उत्सव

बस्तर की परम्परा की एक विचित्र और अनूठी स्थली

लोक और जनजातीय संस्कृति के आदिम उत्स की जीवन्तता को बस्तर में आज भी देखा जा सकता है। लौकिक और पारलौकिक शक्तियों की उपासना,
 श्रृद्धा और भक्ति को पुरातन काल से बस्तर की संस्कृति में प्रमुख स्थान मिला है।
बस्तर का देवलोक देश के अन्य जनजातीय क्षेत्रों से अधिक पुरातन, विस्तृत, और समृद्ध है। पारलौकिक शक्तियों के प्रति जितना अनुशासन और समर्पण यहां देखने को मिलता है,अन्यत्र दुर्लभ है।

भादों जात्रा
 छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से जगदलपुर सड़क पर लगभग 130 कि.मी. की दूरी पर केसकाल है। यहां से एक रास्ता सीतानदी अम्यारण्य और ऋषि मंडल सिहावा को जाता है। यह पहाड़ी राम वन गमन के मार्ग में आती है।  केसकाल की पहाड़ी पर वन विभाग के रेस्ट हाउस में ठहरने की सुविधा है। केसकाल की घाटी से बस्तर अपनी प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत ओढ़े नजर आने लगता है।
 केसकाल की घाटी पर और केसकाल की बस्ती से कुछ दूरी पर बस्तर की प्रमुख देवी भंगाराम देवी का शक्ति स्थल है। इसे देवताओं का न्यायालय भी कहा जाता है। कहा जाता है कि बस्तर के राजा को देवी ने स्वप्न में कहा कि मैं तुम्हारे राज्य में आना चाहती हूं तब राजा ने मंत्री और प्रजा के साथ बस्तर से केसकाल की घाटी पर देवी के स्वागत के लिए आये। तब बड़ी जोर की आंधी चली और देवी पहले पुरुष वेश में घोडे़ पर सवार होकर आई ओर पास आते  जब लोगों ने उन्हें नमन किया तब वे स्त्री वेश में परिवर्तित हो गई। केसकाल की घाटी में सड़क के किनारे बना मंदिर ही देवी के प्रगट होने का स्थान है। इस स्थान से दो कि.मी. की दूरी पर एक दूसरा मंदिर बनवाया गया यहां पर देवी की स्थापना की गई।

 लोगांे का कहना है कि पूर्व में अनुष्ठानिक स्थल दैवीय शक्ति का शक्तिशाली केन्द्र माना जाता था। लोगों को कोई रोग-दोष होने पर इस स्थान पर लाने पर तीन-चार दिन में वह स्वतः ही स्वस्थ हो जाता था और आज भी यह मान्यता भंगाराम को बस्तर में अन्य किसी देवी-देवता की तुलना में उच्च स्थान प्राप्त है। भंगाराम देवी के स्थान को देवताओं का न्यायालय भी कहा जाता है। भादों जात्रा इस स्थान का महत्वपूर्ण अनुष्ठानिक आयोजन है। यह जन्माष्ठमी और पोला के बीच होता है। यह शनिवार को आयोजित किया जाता है और विशेषकर भादों महिने में ही। इसलिए इसे भादों जात्रा कहा जाता हैै।

इस पूरे आयोजन की शुरूआत ग्राम केसकाल के बाजार से होती है, लोग इकट्ठे होकर भंगाराम मंदिर जाते हैं यहां पर लगभग 100 आंगादेव, हजारों सिरहा जो भाव में होते हैं, सैकड़ों  छत्र एक साथ देखे जा सकते हैं। नगाडे़ की गूंज, जनजातीय स्वर वाद्यों की ध्वनि से माहौल अत्यन्त भावपूर्ण और उत्तेजक हो जाता है। लगभग 2000 जनजातीय अनुष्ठानिक लोग जो बस्तर के आधे भाग में इस पुरातन संस्कृति के संवाहक हैं अपने को सर्वोत्कष्ट पारलौकिक सत्ता के समीप अपने को अनुभव करते हैं। हाथ में कटीली चैन से अपने को ही मारते, भाव में आकर कपकपाते, ऐसी शक्तियों के उपस्थित होने का आभास कराते हैं। जिनके प्रति आधुनिक समाज अब संवेदनहीन होने लगा है। नाग वंशीय संस्कृति की जीवन्तता के दर्शन भादों जात्रा पर किए जा सकते हैं। नागवंशीय संस्कृति के प्रतीक चिन्ह के रूप में आंगादेव को बस्तर में सर्वत्र पूजा जाता है। बड़े देव की आराधना यहां प्रमुख है। इसके प्रतीक त्रिशूल और मंदिर के खम्ब में सभी देवी-देवताओं का प्रवेश माना जाता है।
लोग प्रायः 100-50 कि.मी. दूर से जंगल और पहाड़ में उन्हीं मार्गों से पैदल आते हैं जिन मार्गों से उनके पूर्वज भी आते रहेे।

देव-देवियां
 ग्रामों के लोग आफत या किसी परेशानी होने पर भंगाराम समिति के पास लिखित रूप में आवेदन करते हैं और समिति के पुजारी सदस्य आदि उस ग्राम में जाकर उस विपत्ति को दूर करने का प्रयास करते हैं। भादों जात्रा में भंगाराम देव स्थल पर इसके पूरे नौ परगान क्षेत्रों के गोंड, मुरिया, माड़िया, भतरा आदिवासी अपने आराध्य देव, ग्राम देव और भेंट लेकर उपस्थित होते हैं। जिसे रवाना कहा जाता है। इस रवाना में ग्राम की परेशानियों-रोग-दोष का प्रवेश माना जाता है। रवाना को भंगाराम देवी के मंदिर परिसर में रख देते हैं। जिससे वह बला-रोग-परेशानी भंगाराम के पास कैद हो जाती है और ग्राम उससे मुक्त हो जाता है। ऐसी मान्यता है।

 भंगाराम देवी के स्थल पर परगन के माझी क्षेत्रों के देवी-देवता आते हैं। 1 सिलिया परगन,  2 कोण्गूर  परगन 3 औवरी परगन 4 हडेंगा परगन 5 कोपरा परगन 6 विश्रामपुरी परगन 7 आलौर परगन 8 कोगेंटा परगन  9 पीपरा परगनभादों जात्रा के दिन लगभग 450 ग्रामों के लोग अपने देवताआंें को लेकर आते हैं जैसे छोटे डोंगर, बड़े डोंगर के देव, देतेश्वरी माई, खंडा डोकरा, नरसिंगनाथ, ललित कुंवर, शीतला माता और अनेकानेक देव-देवियां यहां उपस्थित होती हैं।  भंगाराम देवी पूरे परगने की प्रमुख है। यह कार्य भंगाराम देवी अपने मंत्री देवताओं और सहायक शक्तियों के माध्यम से करती है।

इस स्थल पर भेंट स्वरूप जो सामग्री लाई जाती है यदि वह कोई पशु है तो उसे ग्राम के लोग प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर लेते हैं और अन्य वस्तु को यहीं छोड़ देते हैंं। माना जाता है कि यहां से कोई वस्तु ले जाने पर आफत भी उस वस्तु के साथ ग्राम चली जायेगी।

मदिर की सारी व्यवस्था नौ परगान क्षेत्रों के माझी क्षेत्रों में ग्रामों से चंदा राशि एकत्रितकीजाती है। इस तरह से यह परस्पर सहयोग से चलाये जाने वाली व्यवस्था है।


1 comment:

  1. Yeh bhi bada achcha lekh hai.Hamaare janjaatiy jeevan me abhi bhi vahi saralta hai, vahi sahaj vishwaas hai jo maanvta ka mool hai. Jab tak ye vishwaas Shehri sabhyta ke aatank aur vyrth kii taarkikta se bach saken tab tak achchha hai. Ye sahaj vishwas hi inke jeevan ki poonji hai.Aise hi vahaan ke anchalon me jaakar jaankari aur saamagri ekatr karte raho, yeh ek bada dastaavez ban jaayega. Aage se inme kuchh aadivaasiyon ke anubhv bhi shamil kar lena.Rochakta aur pramaanikta badhegi.

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