आगत की बस्तर पर दृष्टि
Agat View on Bastar
नगरनार दो :1991
भतरा मोनोग्राफ के श्वेत-श्याम तथा रंगीन दृश्यों के लिए भोपाल से एक फोटोग्राफर को लेकर जाना था। हम रेलगाड़ी से रायपुर पहुंचे और बस से जगदलपुर में जाकर ठहरे। सुबह तय हुआ कि बढ़िया नाश्ता करें, फिर चलें। हमने रास्ते के ठेले से, जहां बहुत से लोग छोले-पुरी का मजा उठा रहे थे.. हमने भी नाश्ता किया और बचत के इरादे से एक मेटाडोर में बैठकर चल दिये। रास्ते में दिखा.. बरगद का विशाल वृक्ष जो अपने नीचे कुछ चढ़ाये गये हाथी, घोड़े, शिल्पों, लाल, सफेद, पीले धागों से बांधे लोगों के संस्कार, आस्था और विश्वास को ढ़ाढ़स बंधाता.. अपने भी बचे रहने की आंस संजोये, एक ठन्डी सी मिट्टी की खुशबू के झोंके से हमारा स्पर्श करता है।
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इसी सड़क के पास चोकावाड़ा आने के पहिले लोगों का हुजूम दिखता है। लोग आपस में लड़ते-झगड़ते से दीखते हैं पास जाने पर हम अपने को अस्थायी बाजार में पाते हैं लोगों के अंदर का लड़ाकू आदमी अपने तौर-तरीके मुर्गे में स्थापित कर, अपने खोजे हथियार के छोटे, छोटे रूप मुर्गे के पैरों में बांध अपनी लड़ाई लड़ता तो दीखता है पर लड़ता हुआ मुर्गा, लहूलुहान होते दूसरे मुर्गे को मारकर जीतने के लिए कटिबद्ध, मौत का खेल खेलता है, मुर्गो के एक दूसरे पर किये वार, उड़ते हुए खून के धब्बे, छिटकते मांस के कतरे लोगों मे उतेजना भर देते हैं, जब एक मुर्गा मरता है तो आदमी जीत जाता है। हारा हुआ मुर्गा, जीते आदमी का भोजन बन जाता है। जीता हुआ मुर्गा अपने जिन्दा रहने का एक सप्ताह और जीत लेता है। लगता है जैसे दुनिया भी अपने विकास के नये हथियारों से कुछ समय और जिन्दा रहने की गुजाईश पैदा करती चलती है। बाजार के कोने में महिला, बूढ़े-बच्चे बाजार करते, 50 पैसे का धना, 1 रूपये का जीरा, 2 रूपये का तेल खरीदते दीखते हैं।
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हम लाल-गुलाबी होते सूरज के सामने के बादलों को पहाड़ों की तुलना करते देखते सड़क की ओर लौटने लगे। शरीर और मन के साथ जैसे आत्मा भी थक गई। पीछे मुड़कर देखना अच्छा नहीं लग रहा था। अपने रोजगार की इतिश्री करते...करते.. रात को ही जगदलपुर आ गये और फिर सोचा कि रात भर जगदलपुर के मच्छरों की दावत बनने से तो अच्छा है कि हिचकोले खाते हुए रायपुर पहुंच कर भोपाल जाया जाये और हम निकल लिए।
क्रमशः